रोजगार
"रोजगार" शब्द का अर्थ है "काम" या "नौकरी"।
रोजगार एसी स्थिति है जहां एक व्यक्ति किसी आर्थिक गतिविधि, व्यवसाय, या पेशे से जुड़ा होता है और इसके बदले में उसे वेतन या अन्य प्रकार के आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं।
श्रमिक
- श्रमिक वह व्यक्ति होता है जो जीविकोपार्जन के लिए किसी आर्थिक गतिविधि में शामिल होता है
- श्रमिक अपनी उत्पादक गतिविधियों से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि की प्रक्रिया में योगदान देता है
- जैसे - प्रबंधक, श्रमिक, डॉक्टर, नाई, प्रोफेसर आदि हैं
भारत में श्रमिकों की संख्या
- वर्ष 2017-18 में भारत की कुल श्रम-शक्ति का आकार लगभग 471 मिलियन आँका गया था। जिसमें दो-तिहाई श्रमिक ग्रामीण हैं।
- देश के अधिकांश लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं, इसीलिए ग्रामीण श्रमबल का अनुपात भी शहरी श्रमबल से कहीं अधिक है।
- भारत में श्रमशक्ति में पुरुषों की बहुलता है। श्रमबल में लगभग 70 प्रतिशत पुरुष तथा शेष महिलाएँ हैं।
- ग्रामीण क्षेत्र में महिला श्रमिक कुल श्रमबल का एक तिहाई हैं, तो शहरों में केवल 20 प्रतिशत महिलाएँ ही श्रमबल में भागीदार पाई गई हैं।
श्रम बल
- वे सभी व्यक्ति, जो काम कर रहे हैं और जो काम न करते हुए भी काम की तलाश कर रहे हैं उन्हें श्रम बल में माना जाता है।
- श्रम बल = काम करने वाले व्यक्ति + काम की तलाश करने वाले /उपलब्ध व्यक्ति।
श्रम बल की गणना के लिए कुल जनसंख्या में से घटाया जाता है
- अयोग्य लोग जैसे बूढ़े या विकलांग व्यक्ति
- जो लोग काम करने के इच्छुक नहीं हैं
- जो लोग काम के लिए उपलब्ध नहीं हैं।
कार्यबल
- "कार्यबल" का अर्थ है वे लोग जो वास्तव में काम कर रहे हैं। इसमें वे लोग शामिल नहीं होते जो काम करना चाहते हैं लेकिन फिलहाल काम नहीं कर रहे हैं।
- कार्यबल = श्रम बल - काम न करने वाले लेकिन काम करने के इच्छुक व्यक्तियों की संख्या
- इससे हम बेरोज़गारी (बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या) के अनुमान पर पहुँचते हैं,
जो इस प्रकार है :-
बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या = श्रम बल - कार्यबल।
श्रमिक जनसंख्या अनुपात
- श्रमिक जनसंख्या अनुपात एक संकेतक है जिसका उपयोग देश में रोजगार की स्थिति का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है
- इसकी गणना कुल श्रमिकों की संख्या को उस जनसंख्या से विभाजित करके तथा उसे 100 से गुणा करके की जाती है।
- यह वास्तव में काम करने वाली जनसंख्या के प्रतिशत को संदर्भित करता है।
भारत में विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में लोगों की भागीदारी
- भारत में प्रत्येक 100 व्यक्तियों में से लगभग 35 श्रमिक हैं।
- शहरी क्षेत्रों में यह अनुपात लगभग 34 है, जबकि ग्रामीण भारत में यह अनुपात लगभग 35 है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के रोजगार में अंतर
1. ग्रामीण क्षेत्रों में
- आय के अवसर कम होते हैं, इसलिए लोग जल्दी से काम पर लग जाते हैं।
- अधिकतर लोग स्कूल या कॉलेज नहीं जा पाते या बीच में ही छोड़ देते हैं।
- काम करना जरूरी होता है, इसलिए शिक्षा की कमी के बावजूद लोग रोजगार में शामिल हो जाते हैं।
2. शहरी क्षेत्रों में
- लोग ज्यादा शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और विभिन्न प्रकार के रोजगार के अवसर होते हैं।
- लोग अपनी शिक्षा और योग्यता के अनुसार काम ढूंढते हैं।
3. महिलाओं की स्थिति
- शहरी क्षेत्रों में केवल 15% महिलाएँ काम करती हैं, क्योंकि अधिकतर पुरुष अच्छा वेतन कमा लेते हैं और महिलाएँ घर पर रहना पसंद करती हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में 25% महिलाएँ काम करती हैं, क्योंकि परिवार की आर्थिक स्थिति उन्हें काम करने के लिए प्रेरित करती है।
रोजगार
एक ऐसी गतिविधि जो किसी व्यक्ति को जीवनयापन के साधन कमाने में सक्षम बनाती है
1. स्वनियोजित
2. भाड़े के श्रमिक
- नियमित कर्मचारी
- आकस्मिक कर्मचारी
1. स्वनियोजित रोजगार
- ऐसी व्यवस्था जिसमें कोई कर्मचारी अपनी जीविका चलाने के लिए अपने संसाधनों का उपयोग करता है, स्वरोजगार कहलाता है।
- भारत में लगभग 52% कार्यबल इसी श्रेणी में आता है
- स्वरोजगार पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए आजीविका का एक प्रमुख स्रोत है।
- स्वरोजगार के मामले में, कोई व्यक्ति अपनी जीविका चलाने के लिए अपनी भूमि, श्रम, पूंजी और उद्यमशीलता का उपयोग करता है
- उदाहरण के लिए दुकानदार, व्यापारी, व्यवसायी, आदि
2. भाड़े के श्रमिक
- यह वह व्यवस्था है जिसमें एक व्यक्ति या श्रमिक(कर्मचारी) अपना श्रम बेचता है बदले में पैसे (मजदूरी) प्राप्त करता है।
- इसमें नियोक्ता (काम देने वाला) वह व्यक्ति या संगठन होता है जो श्रमिक से काम करवाता है।
भाड़े के श्रमिको की विशेषताएँ :
- श्रमिक के पास केवल अपना काम होता है, न कि अन्य संसाधन जैसे जमीन, पैसे, या कारोबार।
- जैसे - यदि डॉक्टर अपने खुद के क्लिनिक पर काम करता है, तो वह स्वरोजगार में है। लेकिन अगर वह किसी अस्पताल में काम करता है, तो यह मजदूरी रोजगार है।
भाड़े के श्रमिक के प्रकार
1. नियमित कर्मचारी
- ये लोग स्थायी काम करते हैं और नियमित वेतन, बोनस,और अन्य लाभ प्राप्त करते हैं।
- उदाहरण :- सरकारी या प्राइवेट कंपनी में स्थायी नौकरी करने वाला व्यक्ति।
2. आकस्मिक कर्मचारी
- ये लोग अस्थायी या कभी-कभार काम करते हैं और नियमित वेतन या लाभ नहीं मिलता।
- उदाहरण :- निर्माण स्थल पर काम करने वाला या किसी विशेष परियोजना पर अस्थायी कर्मचारी।
रोजगार की वृद्धि और बदलती संरचना
1. रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)
- पचास वर्षों के नियोजित विकास का उद्देश्य हमेशा राष्ट्रीय उत्पाद और रोजगार में वृद्धि के माध्यम से अर्थव्यवस्था का विस्तार करना रहा है।
- 1950-2010 के दौरान, भारत का सकल घरेलू उत्पाद सकारात्मक रूप से बढ़ा और रोजगार वृद्धि से अधिक था।
- जीडीपी की वृद्धि में हमेशा उतार-चढ़ाव रहा, लेकिन रोजगार 2% से अधिक की दर से नहीं बढ़ा
- हालाँकि 1990 के दशक के उत्तरार्ध में, रोजगार वृद्धि में गिरावट शुरू हो गई और यह उस विकास के स्तर पर पहुँच गई जो भारत में योजना के शुरुआती चरणों में थी।
2. 'रोजगारहीन संवृद्धि'( Jobless Growth)
- इन वर्षों के दौरान, सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार की वृद्धि के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा था। इस प्रवृत्ति को 'रोजगारहीन संवृद्धि' कहा जाता है।
- 'रोजगारहीन संवृद्धि' एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है जब अर्थव्यवस्था रोजगार के अवसरों में आनुपातिक वृद्धि के बिना अधिक वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने में सक्षम होती है।
- दूसरे शब्दों में, यह एक ऐसी स्थिति है जब रोजगार के अवसरों में संगत विस्तार के बिना अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में समग्र त्वरण होता है।
3. भारत में श्रम बल के अनियतीकरण
- भारत का कृषि प्रधान देश अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और कृषि पर निर्भर है। लेकिन भारत जैसे देशों की कोशिश है कि कृषि पर निर्भर जनसंख्या का अनुपात कम हो।
- 1972-73 में 74% श्रमबल कृषि में था वाही 2011-12 यह अनुपात घटकर 50% हो गया।
- द्वितीयक (उद्योग) द्वितीयक क्षेत्र में हिस्सेदारी 11% से बढ़कर 24% हुई।
- सेवा क्षेत्र में हिस्सेदारी 15% से बढ़कर 27% हुई।
- रोजगार की स्थिति (1972-2018) लोग अब स्वरोजगार और नियमित वेतन-रोजगार की बजाय अनियत श्रम की ओर बढ़ रहे हैं।
इसके प्रमुख कारण है
1. नियमित रोजगार के अवसर की कमी
2. अच्छी शिक्षा का आभाव
3. कौशल युक्त शिक्षा की कमी
भारतीय कार्यबल का अनौपचारिकीकरण
- 55 वर्षों के विकास के बावजूद, भारतीय कामकाजी लोगों का एक बड़ा हिस्सा आज भी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है।
- हाल के वर्षों में, रोजगार की गुणवत्ता कमी आयी है बहुत से श्रमिकों को 10-20 साल काम करने के बावजूद मातृत्व लाभ, भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, और पेंशन जैसी सुविधाएं नहीं मिलतीं।
- सार्वजनिक क्षेत्र में समान काम करने वाले कर्मचारियों की तुलना में निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को कम वेतन मिलता है।
भारत में रोजगार संरचना का अध्ययन दो प्रकार के क्षेत्रों के संबंध में किया जा सकता है
1. औपचारिक या संगठित क्षेत्र
2. अनौपचारिक या असंगठित क्षेत्र
1. औपचारिक या संगठित क्षेत्र
- वे सभी सार्वजनिक और निजी प्रतिष्ठान जहाँ 10 या उससे अधिक श्रमिक काम करते हैं।औपचारिक या संगठित क्षेत्र है
विशेषताएँ : -
- इन प्रतिष्ठानों में काम करने वाले श्रमिक औपचारिक श्रमिक कहलाते हैं क्योंकी इन श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलते हैं साथ ही अच्छा और नियमित वेतन मिलता है
- भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, और पेंशन जैसी सुविधाएं भी मिलती है
- सरकार उन्हें श्रम कानूनों के माध्यम से सुरक्षा प्रदान करती है और ये श्रमिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए ट्रेड यूनियन भी बना सकते हैं।
2. अनौपचारिक या असंगठित क्षेत्र
- अनौपचारिक क्षेत्र में वे सभी निजी उद्यम शामिल हैं जो 10 से कम श्रमिकों को काम पर रखते हैं।
- ऐसे उद्यमों में काम करने वाले श्रमिकों को अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक कहा जाता है। उदाहरण के लिए किसान, कृषि मजदूर, छोटे उद्यमों के मालिक, आदि।
विशेषताएँ : -
- ये सभी गैर-कृषि मज़दूर एक से अधिक नियोक्ताओं के लिए काम करते हैं
- भारत में, 96% से अधिक रोज़गार असंगठित क्षेत्र में पाया जाता है
- इन्हें सरकार से कोई सुरक्षा या विनियमन नहीं मिलता है। ऐसे श्रमिकों को बिना किसी मुआवज़े के बर्खास्त किए जाने का जोखिम रहता है।
- इस क्षेत्र के श्रमिक झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं और अवैध रूप से निर्जन भवन या अप्रयुक्त भूमि पर कब्जा करने वाले व्यक्ति हैं।
बेरोजगारी
एनएसएसओ (NSSO) के अनुसार, बेरोजगारी तब होती है जब लोग काम की कमी के कारण काम नहीं कर पा रहे होते हैं लेकिन वे काम और पारिश्रमिक की मौजूदा स्थिति पाने के लिए विभिन्न तरीकों से कोशिश कर रहे होते हैं।
जैसे -
- रोजगार कार्यालयों, बिचौलियों, दोस्तों या रिश्तेदारों के माध्यम से काम की तलाश
- संभावित नियोक्ताओं को आवेदन देकर काम पाने की इच्छा या उपलब्धता व्यक्त करना
- साधारण शब्दों बेरोजगारी एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है जिसमें लोग मौजूदा मजदूरी दर पर काम करने के लिए इच्छुक और सक्षम होते हैं, लेकिन उन्हें काम नहीं मिलता है।
- बेरोजगारी अकुशल श्रमिकों में ही नहीं बल्कि कुशल श्रमिकों में भी है बेरोजगार व्यक्ति वह है जो आधे दिन में एक घंटे का भी रोजगार नहीं पा पाता है।
भारत में बेरोजगारी आंकड़े के तीन स्रोत हैं :
1. भारत की जनगणना की रिपोर्ट
- इससे बारात के लोगों की आर्थिक गतिविधियों के बारे में जानकारी एकत्र होती है
2. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO)
- NSSO नमूना सर्वेक्षणों के माध्यम से डेटा एकत्र करता है और रोजगार और बेरोजगारी का वार्षिक अनुमान देता है।
3. रोजगार और प्रशिक्षण महानिदेशालय (DGET)
- यह भारत में रोजगार की संरचना, व्यावसायिक संरचना और कर्मचारियों की शैक्षिक प्रोफ़ाइल के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
भारत में बेरोजगारी के प्रकार
1. प्रच्छन्न बेरोजगारी
2. मौसमी बेरोजगारी
3. खुली बेरोजगारी
1. प्रच्छन्न बेरोजगारी (छिपी बेरोजगारी)
- प्रच्छन्न बेरोजगारी वह स्थिति है,जिसमें किसी कार्य में लगे श्रमिकों की संख्या वास्तव में आवश्यकता से अधिक होती है।
- यह भारत जैसे विकासशील देशों के कृषि क्षेत्र में सबसे प्रमुख रूप से है।
- प्रच्छन्न बेरोजगारी की मुख्य समस्या यह है कि सभी लोग रोजगार में लगे हुए प्रतीत होते हैं,अतिरिक्त कार्यबल का योगदान शून्य होता है।
2. मौसमी बेरोजगारी
- मौसमी बेरोजगारी तब होती है जब कुछ खास मौसमों में रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं।
- कृषि में काम मौसमी होता है यह साल भर नहीं होता। फसल की बुवाई, सिंचाई, और कटाई के समय ही काम होता है। जब काम नहीं होता, तो लोग शहरी इलाकों में जाकर नौकरी की तलाश करते हैं।
- जब बारिश शुरू होती है, लोग फिर से अपने गांव लौटकर खेती में काम करने लगते हैं।यह अवधि राज्यों में अलग-अलग होती है, जो खेती के तरीकों, मिट्टी की स्थिति, उगाई जाने वाली फसलों के प्रकार और संख्या आदि पर निर्भर करती है।
3. खुली बेरोजगारी
- खुली बेरोजगारी तब होती है जब लोग प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने के लिए इच्छुक होते हैं। लेकिन फिर भी उन्हें काम नहीं मिल पाता।
- इसे इसलिए "खुली बेरोजगारी" कहते हैं क्योंकि इसे बेरोजगार लोगों की संख्या के आधार पर देखा और गिना जा सकता है।
- खुली बेरोजगारी के मामले में, श्रमिक पूरी तरह से बेकार रहते हैं और अपना समय बर्बाद करते है
भारत में बेरोजगारी के कारण
भारत में बेरोजगारी की समस्या के कई महत्वपूर्ण कारण हैं
1. धीमी आर्थिक विकास
- भारत की विकास दर अक्सर अपेक्षित दर से कम रहती है। रोजगार के अवसर बढ़ती जनसंख्या के साथ मेल नहीं खाते।
2. जनसंख्या विस्फोट
- जनसंख्या की तेज वृद्धि से रोजगार के मौके पर्याप्त नहीं हो पाते।
3. अविकसित कृषि
- कृषि में पुराने तरीके और भूमि पर अधिक दबाव के कारण ग्रामीण बेरोजगारी बढ़ती है।
4. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
- शिक्षा प्रणाली में खामियों के कारण बहुत से युवा उच्च डिग्री के बावजूद सही काम नहीं ढूंढ पाते।
5. धीमा औद्योगिक विकास
- पूंजी और आधुनिक तकनीक की कमी से उद्योगों का विकास धीमा रहा, जिससे रोजगार के अवसर कम हुए।
- कुटीर और लघु उद्योगों का पतन
- पारंपरिक उद्योगों में गिरावट और नए, कुशल उद्योगों के आने से बेरोजगारी बढ़ी है।
7. दोषपूर्ण योजनाएँ
- योजनाएँ ग्रामीण-शहरी पलायन को रोकने, श्रम-गहन तकनीकों को अपनाने, और रोजगार सृजन कार्यक्रमों को सही ढंग से लागू करने में असफल रही हैं।
8. अपर्याप्त रोजगार नियोजन
- रोजगार सृजन योजनाओं को प्राथमिकता नहीं दी जाती और कानूनी प्रावधानों की कमी रहती है।
9. कम पूंजी निर्माण
- पूंजी निर्माण की कम दर से कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों का विकास प्रभावित हुआ, जिससे रोजगार सृजन पर असर पड़ा।
भारत में बेरोजगारी की समस्या को हल करने के उपाय
1. सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि
- GDP की वृद्धि दर को 8% से 9% तक बढ़ाना चाहिए। इससे रोजगार के अवसर तेजी से बढ़ सकते हैं।
2. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण
- जनसंख्या की वृद्धि को धीमा करने के लिए प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण नीतियों को अपनाना जरूरी है। इससे नई नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा कम होगी।
3. कृषि क्षेत्र का विकास
- कृषि में तकनीकी सुधार, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, और सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देना चाहिए। इससे कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और श्रम उत्पादकता में सुधार होगा।
4. लघु उद्योगों को प्रोत्साहन
- लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता, तकनीकी प्रशिक्षण, और बुनियादी ढाँचे की सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए। इससे ये उद्योग बेहतर काम कर सकेंगे और अधिक रोजगार पैदा कर सकेंगे।
5. बुनियादी ढाँचे में सुधार
- स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं को सुधारना चाहिए। इससे कृषि और उद्योगों की उत्पादकता बढ़ेगी और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
6. विशेष रोजगार कार्यक्रम
- मजदूरी या स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने वाले विशेष कार्यक्रम लागू किए जाने चाहिए।
7. रोजगार कार्यालयों में सुधार
- रोजगार कार्यालयों को बेहतर तरीके से चलाना चाहिए ताकि नौकरी चाहने वालों को सही मार्गदर्शन मिल सके।
8. स्वरोजगार के अवसर
- स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता, कौशल प्रशिक्षण, और विपणन जैसी सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए।
9. शैक्षिक प्रणाली और कौशल विकास
- शिक्षा प्रणाली को व्यावसायिक और कार्योन्मुखी बनाया जाना चाहिए। कौशल विकास के लिए विशेष प्रशिक्षण और योजनाएँ शुरू की जानी चाहिए, जैसे कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना।
सरकारी नीतियाँ और रोजगार सृजन
- सरकार ने रोजगार सृजन के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की हैं,जिनसे लोगों को न्यूनतम सुरक्षा और नौकरी की संतुष्टि मिल सके। इनमें से एक प्रमुख पहल है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA),2005।
- इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आजीविका सुरक्षा बढ़ाना।
- प्रत्येक ग्रामीण परिवार को साल में 100 दिनों का वेतन-रोजगार दिया जाता है, अगर उनके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम के लिए काम करने को तैयार होते हैं।
सरकारी रोजगार सृजन के दो प्रमुख तरीके
1. प्रत्यक्ष रोजगार
- सरकार विभिन्न विभागों में लोगों को सीधे रोजगार देती है। इसके अलावा, उद्योग, होटल और परिवहन कंपनियाँ भी चलाती है, जो श्रमिकों को सीधे रोजगार प्रदान करती हैं।
2. अप्रत्यक्ष रोजगार
- सरकारी उद्यमों द्वारा माल और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि से निजी उद्यमों को भी कच्चा माल मिलना आसान होता है। इससे निजी उद्यम भी अधिक उत्पादन करने लगते हैं और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। इसे 'अप्रत्यक्ष रोजगार' कहा जाता है।
रोजगार सृजन कार्यक्रम
सरकार ने कई रोजगार सृजन कार्यक्रम लागू किए हैं, जिनका उद्देश्य लोगों को रोजगार और अन्य सेवाएँ प्रदान करना है। प्रमुख कार्यक्रमों में शामिल हैं :
1. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 2005
2. प्रधानमंत्री रोजगार योजना
3. ग्रामीण रोजगार योजना
इन कार्यक्रमों के उद्देश्य :-
1. रोजगार सृजन
- लोगों को काम और आय प्रदान करना।
2. सेवाएँ
- प्राथमिक स्वास्थ्य, शिक्षा, और ग्रामीण आश्रय जैसी सेवाएँ उपलब्ध कराना।
3. संपत्ति और विकास
- आय और रोजगार सृजन के लिए संपत्तियाँ खरीदने में सहायता, सामुदायिक संपत्ति का विकास, घरों और स्वच्छता के निर्माण में मदद करना।
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